आध्यात्म किसे कहते है
पांच देवता और पांच तत्व
सारा का सारा ब्रह्मांड एक पिंड के समान है। पिंड का मतलब है- हमारा शरीर। यह एक बड़े विशाल ब्रह्मांड का प्रतीक है। जो ब्रह्मांड में है, वही हमारे शरीर में विद्यमान है। पिंड के भीतर क्या-क्या भरा पड़ा है ? पंचतत्त्व भरे पड़े हैं, पाँच प्राण भरे पड़े हैं। ये ही पाँच देवता हैं। मनुष्य अगर भीतर के देवता को जगा ले तो बाहर के देवता स्वयं खिंचे चले आते हैं। भीतर का मैगनेट जब खींचता है तो वे स्वयं खिंचे चले आते हैं। पेड़ों का मैगनेट बादलों को खींचता है। जहाँ-जहाँ घास-पात, पेड़-पौधे होते हैं वे बादलों को खींचते हैं तथा बादल बरसते हैं। जहाँ रेगिस्तान
होता है, वहाँ बादल आते तो हैं, परंतु रेगिस्तान का मैगनेट उन्हें खींच नहीं पाता और वे वापस चले जाते हैं। भीतर का देवता जगे तो बाहर के देवता हमारे पास स्वयं आ जाते हैं। भीतर का देवता मरा हुआ हो तो बाहर के देवता काम नहीं करते हैं।
विवेकानंद का देवता जगा तो रामकृष्ण परमहंस आए और झल्लाकर कहा तू बी० ए० के फेर में पड़ा है, चल हमारा काम रुका पड़ा है। रामकृष्ण परमहंस विवेकानंद के अंदर की कसक को समझ गए। उनके पास नित्य हजारों लोग आते थे, जिनको किसी प्रकार की मुसीबतें होती थीं। वे उन्हें थोड़ा आशीर्वाद, वरदान देकर विदा कर देते थे परंतु रामकृष्ण परमहंस विवेकानंद के पास रोज जाते थे। एक बार विवेकानंद ने कहा, “आप क्यों आकर हमें तंग करते हैं, हमारा मन जब होगा तो हम आएँगे, आप हमें परेशान न करें।” रामकृष्ण परमहंस ने देखा कि इसके अंदर कसक है, इसी से हमारा काम हो सकता है और उन्होंने उन्हें धन्य कर दिया। हमारे गुरु भी हमारे पास आए और हम धन्य हो गए।
उदाहरण : what is spirituality
मरी हुई लाश का पता लग जाए तो
कुत्ते पहुँच जाते हैं तथा लाश को खाकर खत्म कर
डालते हैं। देवताओं के बारे में भी यही बात है।
हर एक के पास देवता नहीं आते हैं। वे पूजा करने,
प्रसाद चढ़ाने वालों को अपनी शक्ति, कृपा नहीं देते
हैं। देवता सवा रुपए के प्रसाद के पीछे नहीं दौड़ते।
देवता भिखारी नहीं होते। हम कचौड़ी खिलाएँगे,
हमारा काम कर दीजिए। उनकी हैसियत इतनी कम
नहीं है कि वे कचौड़ी के लिए जाएँ। बड़े काम
के लिए जाएँगे। मित्रो, सवा रुपए में भगवान
मनोकामना पूर्ण नहीं कर सकते हैं। हमको भगवान
की गरिमा का ख्याल रखना होगा। आदमी के अंदर
के खजाने का ध्यान रखना होगा। पहले जमाने के
लोग खजाने का पता लगाते थे कि कहाँ-कहाँ मिट्टी
के अंदर सोना, चाँदी या अन्य धातुएँ गड़ी हैं। उसी
प्रकार देवताओं का प्रवेश वहाँ होता है, जहाँ
व्यक्तित्व के कण’ का खजाना होता है। ऐसे आदमी
पर महान आदमी, तपस्वी, महात्मा, ज्ञानी, देवात्मा की कृपा अनुदान बरसने लगते हैं।
अध्यात्म, जालसाजी, मुहल्ले वालों को फँसाने, ग्राह को फँसाने, देवी-देवताओं को फँसाने की विद्या का नाम नहीं है। अध्यात्म आदमी के व्यक्तित्व के विकास का नाम है। सुंदर फूल से जब सुगंध निकलती है तो मधुमक्खियाँ स्वयं आ जाती हैं। उसी प्रकार मनुष्य का खिले हुए फूल की तरह व्यक्तित्व होना चाहिए। गुरु, महात्मा, संतों और देवताओं को फँसाने की विद्या मत करो, इसमें फयदा नहीं है। देवता बड़े जबरदस्त हैं। मछली को पकड़ने के लिए आटे की गोली, बंसी काम आती है। ऐसा देवता नहीं है। देवता से दूर रहो। वह तो हमारे भीतर है, उसे जगा। अपने भीतर वाले देवता को विकसित किए बिना, बाहर के देवता को हम प्रसन्न नहीं कर सकते हैं। अगरबत्ती, बताशे चढ़ाकर देवताओं का मखौल न करें। हमें अपने भीतर के देवता का विकास करना चाहिए। इसी का नाम जप, इसी का नाम ध्यान, इसी
नाम चांद्रायण व्रत है। यह हम आपको भले आदमी बनाने, श्रेष्ठ बनाने के लिए बतला रहे हैं। आपके भीतर सब चीजें विद्यमान हैं। पाँच देवता कहाँ से आते हैं? वे आपके भीतर हैं। मिट्टी की परतें जम गई हैं, दबे पड़े हैं। उन्हें जगाने की विधा के पहले उन्हें साफ करना होगा। हम उसे सिखाते हैं। पहले अपने आप को विकसित कीजिए। पाँच भंडार, पाँच देवताओं को जगाने की विधि ‘पंचकोश की उच्चस्तरीय साधना’ कहलाती है। ये गायत्री के पाँच मुख हैं, जिनका संबंध सूक्ष्म शरीर से है। स्थूल शरीर यानि हाथ-पैर से हम आठ घंटे काम करके किसी तरह आठ-दस रुपए कमा लेते हैं। यह स्थूल शरीर कमजोर है।
हमारे भीतर एक सत्ता सूक्ष्म है। वह स्थूल से ज्यादा शक्तिशाली है। नेपोलियन का वजन, लंबाई- चौड़ाई सामान्य व्यक्ति की तरह थी, परंतु उसका सूक्ष्म महान था। वह आल्पस पर्वत के पास गया और बोला हमें रास्ता दीजिए, नहीं तो हम आपको
उखाड़कर फेंक देंगे। बेटे ! आल्पस पर्वत हिमालय
से ज्यादा ऊँचा है। नेपोलियन ने अपनी सेना के साथ उसे पार कर दिखाया। सूक्ष्म की ताकत को अगर हम समझ सकें तो मजा आ जाएगा। गांधी जी का सूक्ष्म शरीर मजबूत था। वे पाँच फुट दो इंच कद वाले थे तथा उनका वजन छियानवे पौंड थ कोई भी चौहद साल का बच्चा उनसे ज्यादा वजनदार हो सकता है, पर गांधी जी की ताकत पहलवान से ज्यादा थी। अँगरेजों का राज्य जो अफ्रीका से हिंदुस्तान तथा न्यूजीलैंड तक फैला था। जिसके राज्य में कभी सूरज अस्त नहीं होता था। गांधी जी की सूक्ष्म ताकत ने उन्हें मजबूर कर दिया भारत छोड़ने के लिए। गांधी जी ने कहा ‘क्विट-इंडिया’ अर्थात अँगरेजो भारत छोड़ो। अँगरेजो ने कहा आपके पास क्या है? बंदूक है जो हम डर के मारे हिंदुस्तान छोड़ें। गांधी जी ने जनता से कहा ‘डू और डाइ’ अर्थात करो या मरो। सन् उन्नीस सौ बयालीस के। आंदोलन में सभी ने उनका साथ दिया। इसमें हजारों
आदमी गोली के निशाना बना दिए गए, जेल गए, फाँसी के फंदे पर चढ़ गए। मित्रो, यह गांधी जी के सूक्ष्म शरीर की आवाज थी।
स्थूल शरीर में क्या रखा है ? वह रोटी खाता रहता है, गंदगी निकालता रहता है। हाड़-मांस के बने इस शरीर को अगर फाड़ दें तो केवल बदबू भरी गंदगी ही दिखाई पड़ेगी। यह बदबू मलमूत्र और पसीने के रास्ते निकलती है। हम लक्स साबुन लगाते हैं, परंतु ये बदबू समाप्त नहीं होती है। इसके लिए हम मंजन करते हैं, दाँत साफ करते हैं, कभी पान खाते हैं तो कभी सुपारी खाते हैं, परंतु आदमी के भीतर जो जखीरे काम करते हैं, वह ताकत सूक्ष्म की है। इसी सूक्ष्म शक्ति को विकसित करने का नाम अध्यात्म है। बाहर को विकसित करने का ढंग आपको मालूम है। कसरत कीजिए, पौष्टिक चीजें खाइए, विटामिन्स खाइए, स्थूल को विकसित कीजिए, परंतु सूक्ष्म किस तरह से विकसित होगा, यह कोई नहीं जानता। दिमाग को बढ़ाने
एवं कंट्रोल करने की विधि सबको मालूम है।
फिजिक्स, इकोनॉमिक्स पढ़िए और दिमाग को
बढ़ाइए, पर यह सब भौतिक उपलब्धियाँ हैं। हम
जिसे सिखाना चाहते हैं वह ‘चेतनशक्ति’ है जिसे
ऋद्धि-सिद्धि कहते हैं। नेपोलियन के भीतर का
वह अंश विकसित हुआ था जो लोगों को प्रभावित
करता था, सेना को प्रभावित करता था। एक बार
नेपोलियन को सेना ने गिरफ्तार करना चाहा। चारों
तरफ से उसे घेर लिया गया। उसने सोचा कि ये
लोग मुझे गिरफ्तार कर लेंगे, अगर गिरफ्तार न
हुआ तो गोली मार देंगे। उसकी चेतनशक्ति जाग्रत
हो गई। उसने कड़ककर कहा रुको। सारे सिपाही
खड़े हो गए। नेपोलियन ने कहा दोस्तो, हम तुम्हारे
कप्तान हैं। चलो हमारे साथ, बंदूकों को नीचे करो।
उसने आदेश दिया, पीछे घूमो । सारे के सारे सिपाही
नेपोलियन के साथ बिजली के तरीके से पीछे-
पीछे चल पड़े। नेपोलियन शेर की तरह आगे चल
रहा था। वह जबरदस्त आदमी था।
मनुष्य के अंदर वाला माद्दा अध्यात्म का वह हिस्सा है जो लोगों को, संसार को प्रभावित करता है, चमत्कार दिखाता है यानी भौतिक चीजों का चमत्कार दिखाता है। यह अध्यात्म तो है परंतु भौतिक वस्तुओं को प्रभावित करने वाला माद्दा है। एक हिस्सा हमारा वह है जिसे सिद्धि कहते हैं। एक और माद्दा हमारे भीतर है जो दिव्य चेतना को प्रभावित करता है, उसे हम भगवान कह सकते हैं। दैवी सत्ता कह सकते हैं। पदार्थ का भी महत्त्व बहुत है। एक ‘लेसर’ किरणें होती हैं जिसे छोड़ते ही चंद्रमा तक जा पहुँचती है। लेसर में वह शक्ति होती है कि एक जगह से छोड़ने पर वह दूसरे स्थान पर जाकर उसे जलाकर खाक कर देती है। एक पदार्थ माध्यम से टेलीफोन का बटन दबाते ही करोड़ों मील दूर बैठे व्यक्ति से हम बातें कर लेते हैं। यह ‘फिजिक्स’ की बातें हैं जो पदार्थ को प्रभावित करती हैं। मनुष्य के सूक्ष्म का एक हिस्सा वह है जो वस्तु यानी
पदार्थ को प्रभावित करता है। इसके द्वारा हम चमत्कार दिखा सकते हैं, संसार को प्रभावित कर सकते हैं। यह माद्दा नंबर दो है जिसे हम सिद्धियाँ कहते हैं।
चेतनशक्ति महान है। उसमें भावना काम करती
है, संवेदना काम करती है, देवत्व काम करता है।
अगर दोनों का तालमेल हो जाए तो मनुष्य को
ऋद्धि-सिद्धियाँ प्राप्त हो सकती हैं। पहले बड़ी-
बड़ी बीमा कंपनियाँ हुआ करती थीं, जो छोटी-
छोटी बीमा कंपनियों का उत्तरदायित्व उठाती थीं।
एक और बीमा कंपनी है, जिसे हम भगवान कहते
हैं। इस बड़ी शक्ति के साथ यदि हमारा तालमेल
बैठ जाए, लेन-देन प्रारंभ हो जाए तो मजा आ जाए।
यह ऋद्धि वाला हिस्सा है जो हमारी जीवात्मा से
संबंध रखता है। सिद्धियाँ चमत्कार वाला पक्ष है
जिसे दिखाया जा सकता है। ऋद्धि हमारा वैभव है
जो हमारी प्रगति करने में सक्षम है। इन दोनों को
विकसित करने का नाम ही अध्यात्म है।