Hindi Kahani विश्वासघात

विश्वासघात

रोम की राज्यसभा के सभापति जुलियस सीजर पर षड्यंत्रकारियों ने आक्रमण किया। षड्यंत्रकारी उन पर आघात कर रहे थे। सीजर निरस्त्र थे फिर भी किसी प्रकार अपना बचाव करने का प्रयत्न कर रहे थे। इसी समय उनके परम विश्वासी मित्र ब्रूट्स ने भी उन पर आक्रमण किया। अब असह्य हो गया। मित्र के विश्वासघात से उनका हृदय फट गया। सीजर ने ब्रूट्स की ओर देखकर कहा- “मित्र ! तुम भी… “ו

सीजर ने अपने बचाव का प्रयत्न छोड़ दिया और आहत होकर मृत्यु की गोद में गिर पड़ा। 

विरोधी को प्रवेश नहीं

विकासवाद के अन्वेषक चार्ल्स डार्विन जब मरणासन्न थे तो उनके घर वालों ने पादरी को बुलाया और कहा-” इनकी आत्मा को शांति देने वाला धर्म संस्कार करा दीजिए।”

पादरी ने कहा- “यह महोदय नास्तिक रहे हैं। नास्तिक को स्वर्ग नहीं मिल सकता। इनके लिए धर्म संस्कार मैं तभी करा सकूँगा जब यह अपने आस्तिक होने की आस्था प्रकट करें।”

डार्विन की छोटी पुत्री मार्था ने पादरी से पूछा- “मेरे पापा को, जो आजीवन संत की तरह रहे हैं, क्या संस्कार के अभाव में फिर भी नरक ही जाना पड़ेगा? क्या इन्हें स्वर्ग में बिना धर्म संस्कार के ही स्थान न मिल जाएगा ?”पादरी बोला कि स्वर्ग तो ईश्वर का घर है, वे अपने विरोधियों को क्यों प्रवेश करने देंगे !

 

ईर्ष्या साँपिनि को न शतावा

जंगल में गाय और घोड़ा घास चर रहे थे। घोड़े को ईर्ष्या हुई कि वह गाय के सीगों के डर से अच्छी घास नहीं खा पाता, किसी तरह उस पर काबू पाया जाए। तभी वहाँ इनसान आ निकला और उसने दोनों को ललचाई नजर से देखा। घोड़ा इनसान के पास आकर बोला- “देखते क्या हो, गाय का मीठा दूध पीकर अपनी भूख मिटाओ।” पर वह तो मुझसे तेज दौड़ सकती है, उस पर काबू कैसे पा सकूँगा ? मेरी पीठ पर सवार हो जाओ, मैं गाय से तेज दौड़ सकता हूँ ? इनसान घोड़े की पीठ पर सवार हो गया। उसने पहले घोड़े को गुलाम बनाया और फिर गाय को काबू में किया। उसी दिन से दोनों पशु इनसान के गुलाम हैं।

मान्यता अपनी-अपनी

किसी अरब व्यापारी को पता चला कि इथोपिया के लोगों के पास चाँदी बहुत अधिक है। उसे वहाँ जाकर व्यापार करने की सूझी और एक दिन सैकड़ों ऊँट प्याज लादकर वह इथोपिया के लिए चल भी पड़ा। इथोपियावासियों ने पहले कभी प्याज नहीं खाया था। प्याज खाकर वे बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने सब प्याज खरीद लिया और उसके बराबर सोना-चाँदी तौल दिया। व्यापारी बहुत प्रसन्न हुआ। धनवान बनकर देश लौटा।

एक दूसरे व्यापारी को इसका पता चला तो उसने भी इथोपिया जाने की ठानी। उसने प्याज से भी अच्छी वस्तु लहसुन लादी और इथोपिया जा पहुँचा। वहाँ के लोगों ने लहसुन चखा तो प्रसन्नता से नाच उठे। सारा लहसुन उन्होंने ले लिया पर बदले में दें क्या, यह प्रश्न उठा। उनने देखा चाँदी तो बहुत है पर सोने से भी अच्छी वस्तु उनके पास प्याज है, इसलिए प्याज से दूसरे व्यापारी की बोरियाँ लाद दीं।

व्यापारी खीझ उठा पर बेचारा करता क्या, चुपचाप प्याज लेकर घर लौट आया। बेचारा व्यापारी समझ नहीं पा रहा था कि अमूल्यता की कसौटी क्या है ? उसे लगा यह सब अपने-अपने मन की मान्यताओं और प्रसन्नता के खेल हैं। सत्य तो कुछ और ही है, जिसे मनुष्य नहीं समझ पा रहा।

जन्मना जायते शूद्र

भगवान बुद्ध अनाथ पिंडक के जैतवन में ग्रामवासियों को उपदेश कर रहे थे। शिष्य अनाथ पिंडक भी समीप ही बैठा धर्मचर्चा का लाभ ले रहा था। तभी सामने से महाकाश्यप मौद्गल्यायन, सारिपुत्र, चुंद और देवदत्त आदि आते हुए दिखाई दिए। उन्हें देखते ही बुद्ध ने कहा- “वत्स ! उठो, यह ब्राह्मण मंडली आ रही है, उसके लिए योग्य आसन का प्रबंध करो। “अनाथ पिंडक ने आयुष्मानों की ओर दृष्टि दौड़ाई, फिर साश्चर्य कहा- ” भगवन् ! आप संभवतः इन्हें जानते नहीं। ब्राह्मण तो इनमें कोई एक ही है, शेष कोई क्षत्रिय, कोई वैश्य और कोई अस्पृश्य भी है।”

गौतम बुद्ध अनाथ पिंडक के वचन सुनकर हँसे और बोले- “तात ! जाति जन्म से नहीं, गुण, कर्म और स्वभाव से पहचानी जाती है। श्रेष्ठ रागरहित, धर्मपरायण, संयमी और सेवाभावी होने के कारण ही इन्हें मैंने ब्राह्मण कहा है। ऐसे पुरुष को तू निश्चय ही ब्राह्मण मान, जन्म से तो सभी जीव शूद्र होते हैं।”

स्वप्न पर मत रीझो

एक युवक ने स्वप्न में देखा कि वह किसी बड़े राज्य का राजा हो गया है। स्वप्न में मिली इस आकस्मिक विभूति के कारण उनकी प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। प्रातःकाल पिता ने काम पर चलने को कहा, माँ ने लकड़ियाँ काट लाने की आज्ञा दी, धर्मपत्नी ने बाजार से सौदा लाने का आग्रह किया। पर युवक ने कोई भी काम न कर एक ही उत्तर दिया- “मैं राजा हूँ, मैं कोई काम कैसे कर सकता हूँ?”

घर वाले बड़े हैरान थे, आखिर किया क्या जाए ? तब कमान सँभाली उनकी छोटी बहिन ने। एक-एक कर उसने सबको बुलाकर चौके में भोजन करा दिया। अकेले खयाली महाराज ही बैठे के बैठे रह गए। शाम हो गई, भूख से आँतें कुलबुलाने लगीं। आखिर जब रहा नहीं गया तो उसने बहन से कहा- “क्यों री ! मुझे खाना नहीं देगी क्या?”

बालिका ने मुँह बनाते हुए कहा- “राजाधिराज ! रात आने दीजिए,, परियाँ आकाश से उतरेंगी, वही आपके उपयुक्त भोजन प्रस्तुत करेंगी। हमारे रूखे-सूखे भोजन से आपको संतोष कहाँ होता ?”

व्यर्थ की कल्पनाओं में विचरण करने वाले युवक ने हार मानी और मान लिया कि धरती पर रहने वाले मनुष्य को निरर्थक लौकिक एवं भौतिक कल्पनाओं में ही न डूबे रहना चाहिए वरन जीवन का जो शाश्वत और सनातन सत्य है उसे प्राप्त और धारण करने का प्रयत्न भी करना चाहिए। इतना मान लेने पर ही उसे भोजन मिल सका।