देशी हिंदी कहानी दया और कंजूसी Hindi Kahani

आत्मज्ञान आवश्यक

मनुष्य को एक पंख उग आया- विज्ञान का पंख। उसने जोर लगाया और आकाश में उड़ गया। पर अब वह मुक्त और शांत नहीं था। उसे चारों ओर से जटिलता की आँधियों ने सताना प्रारंभ कर दिया।मनुष्य बहुत घबराया। प्रार्थना की- “हे प्रभो! कैसे संकट में डाल दिया ? इससे तो अच्छा था, हमें जन्म ही न देते !

आकाश को चीरती हुई काल-पुरुष की आवाज आई-“वत्स, आत्मज्ञान का एक और पंखा उगा। भीतर वाली चेतना का भी विकास कर, वही संतुलन पैदा कर सकेगी।”

दया यज्ञ

एक गृहस्थ ने तीन यज्ञ किए, जिनमें उसका सब धन खरच हो गया। गरीबी से छूटने के लिए विद्वान ने बताया कि तुम अपना यज्ञों का पुण्य अमुक सेठ को बेच दो, वह तुम्हें धन दे देंगे।

वह व्यक्ति पुण्य बेचने चल दिया। रास्ते में एक जगह भोजन करने बैठा, तो एक भूखी कुतिया वहाँ बैठी मिली, जो बीमार भी थी, चल-फिर भी नहीं सकती थी। उसकी दशा देखकर गृहस्थ को दया आई और उसने अपनी रोटी कुतिया को खिला दी और खुद भूखा ही आगे चल दिया।

धर्मराज के यहाँ पहुँचा तो उनने कहा- “तुम्हारे चार यज्ञ जमा हैं। किसका पुण्य बेचना चाहते हो?” गृहस्थ ने कहा- “मैंने तो तीन ही यज्ञ किए थे, यह चौथा यज्ञ कैसा?” धर्मराज ने कहा- “यह दया यज्ञ है। इसका पुण्य उन तीनों से बढ़कर है।”

कंजूसी किस काम की?

एक महात्मा ने किसी भक्त की सेवा भावना से प्रसन्न होकर उसे सात दिन के लिए पारसमणि देकर कहा- “इसे छूने से लोहा सोना हो जाता है। जितने सोने की जरूरत हो, बना लो। सात दिन बाद वह वापस ले ली जाएगी।”

भक्त बड़ा प्रसन्न हुआ कि अब मेरा सारा दरिद्र दूर हो जाएगा। पर वह था बड़ा कंजूस। सस्ता लोहा बड़ी तादात में ढूँढ़ने लगा। जिस दुकान पर वह गया वहाँ उसकी समझ में लोहा थोड़ा था और मँहगा भी था बहुत, सस्ता और बहुत बड़ा ढेर ढूँढ़ने के लालच में वह कई नगरों में गया पर उसे कहीं संतोष न हुआ।

इसी भाग-दौड़ में सात दिन पूरे हो गए। मणि वापस ले ली गई और वह रत्तीभर भी सोना प्राप्त न कर सका। अधिक सयाने बनने वाले और अधिक कंजूस सदा घाटे में रहते हैं।

मेरा भाई-बंधु और कोई नहीं

एक बार महात्मा ईसा बहुत से जिज्ञासुओं से घिरे हुए उन्हें उपदेश कर रहे थे। तभी किसी ने आकर उनसे कहा- “तुम्हारे भाई और माता वहाँ बाहर खड़े तुम से बात करना चाहते हैं। तुम जाकर उनसे मिल लो।”

महात्मा ईसा बड़े साधारण भाव से यह उत्तर देकर अपने उपदेश कार्य में लग गए- “संसार में मेरा भाई और मेरी माता अन्य कोई नहीं, यही जिज्ञासु जनता ही मेरे भाई और मेरी माता हैं क्योंकि जो मेरे स्वर्गीय पिता के आदेश पर चले वही मेरा भाई, बहन व माता-पिता है। मैं परमात्मा के आदेशों का पालन करने वाले को ही बंधु-बांधव मानता हूँ।”

सज्जन की खोज

बादशाह को एक कर्मचारी नौकर की आवश्यकता थी। तीन उम्मीदवार उनके सामने पेश किए गए।बादशाह ने पूछा- “यदि मेरी और तुम्हारी दाढ़ी में साथ-साथ आग लगे तो पहले किसकी बुझाओगे ?”

एक ने कहा, पहले आपकी बुझाऊँगा। दूसरे ने कहा, पहले अपनी बुझाऊँगा। तीसरे ने कहा, एक हाथ से अपनी और दूसरे हाथ से आपकी बुझाऊँगा।

बादशाह ने तीसरे आदमी की नियुक्ति कर दी और दरबारियों से कहा “जो अपनी उपेक्षा करके दूसरों का भला करता है वह अव्यावहारिक है। जो स्वार्थ को ही सर्वोपरि समझता है वह नीच है और जो अपनी और दूसरों की भलाई का समान रूप से ध्यान रखता है उसे ही सज्जन कहना चाहिए। मुझे सज्जन की आवश्यकता थी, सो उस तीसरे आदमी की नियुक्ति की गई।

इन्हें पता नहीं कि वह क्या कर रहे हैं

जब नगर-नायक विक्षिप्त जनता की भीड़ लेकर ईसा को उनके निवास स्थान पर गिरफ्तार करने लगे तो उनके शिष्य शमौन पतरस से न देखा गया, वह तलवार निकाल कर गिरफ्तार करने वालों की ओर झपटा। महात्मा ईसा ने उसे रोकते हुए कहा- “शमौन ! तलवार म्यान में करो। इन पर क्रोध मत करो। यह बेचारे नहीं जानते कि यह क्या कर रहे हैं। किंतु तुम्हें तो जानना चाहिए कि तुमको क्या करना चाहिए और क्या कर रहे हो। यदि इनको अपने कृत्य का ज्ञान रहा होता, तो ये ऐसा कदापि नहीं करते। अज्ञानी व्यक्ति क्रोध के नहीं, दया के पात्र हैं।”

वातावरण शांत रखो और जो मृत्यु का प्याला परमपिता ने मेरे लिए पीने को भेजा है, उसे मुझे खुशी से पीने दो। मेरे कर्त्तव्य में हिंसा की दुर्गंध न भरो। इन्हें खुद क्षमा करो और परमपिता से भी क्षमा कर देने के लिए प्रार्थना करो। न्याय रक्षा

ईरान का बादशाह नौशेरवाँ एक दिन शिकार खेलते हुए दूर निकल गया। दोपहर का समय हो जाने से एक गाँव के पास डेरा डालकर भोजन की व्यवस्था की गई। अकस्मात मालूम हुआ कि नमक नहीं है। इस पर सेवक पास के घर में जाकर थोड़ा सा नमक ले आया। बादशाह ने उसे देखकर पूछा- “नमक के दाम दे आए?” उसने उत्तर दिया- “इतने से नमक का दाम क्या दिया जाए?” नौशेरवाँ ने फौरन कहा- “अब से आगे कभी ऐसा काम मत करना और इस नमक की कीमत इसी समय जाकर दे आओ। तुम नहीं समझते कि अगर बादशाह किसी के बाग से बिना दाम दिए एक फल ले ले तो उसके कर्मचारी बाग को ही उजाड़कर खा जाएँगे।” नौशेरवाँ की इसी न्यायशीलता ने उसके राज्य की जड़ जमा दी और आज भी शासकों के लिए उसका आचरण आदर्शस्वरूप माना जाता है।

छोटी भूल का बड़ा दुष्परिणाम

कहते हैं कि कलंग देश का राजा मधुपर्क खा रहा था। उसके प्याले में से थोड़ा सा शहद टपक कर जमीन पर गिर पड़ा।

उस शहद को चाटने मक्खियाँ आ गईं। मक्खियों को इकट्ठी देख छिपकली ललचाई और उन्हें खाने के लिए आ पहुँची। छिपकली को मारने बिल्ली पहुँची। बिल्ली पर दो-तीन कुत्ते टूटे। बिल्ली भाग गई और कुत्ते आपस में लड़कर घायल हो गए।

कुत्तों के मालिक अपने-अपने कुत्तों के पक्ष का समर्थन करने लगे और दूसरे का दोष बताने लगे। उस पर लड़ाई ठन गई। लड़ाई में दोनों ओर की भीड़ बढ़ी और आखिर सारे शहर में बलवा हो गया। दंगाइयों को मौका मिला तो सरकारी खजाना लूटा और राजमहल में आग लगा दी।

राजा ने इतने बड़े उपद्रव का कारण पूछा तो मंत्री ने जाँचकर बताया कि भगवान आपके द्वारा असावधानी से गिराया हुआ थोड़ा सा शहद ही इतने बड़े दंगे का कारण बन गया है। तब राजा समझा कि छोटी सी असावधानी भी मनुष्य के लिए कितना बड़ा संकट उत्पन्न कर सकती है।

कर्त्तव्यनिष्ठा का पुरस्कार

बादशाह अब्बास अपने एक पदाधिकारी के यहाँ दावत में गए। वहाँ उन्होंने और सब साथियों ने इतनी मदिरा पी ली कि किसी के होश हवाश दुरस्त नहीं रहे। नशे की झोंक में बादशाह खड़ा हो गया और उसी पदाधिकारी के अंतःपुर की ओर जाने लगा। पर दरवाजे पर उस पदाधिकारी का नौकर इस प्रकार खड़ा था कि उसे हटाए बिना बादशाह भीतर नहीं घुस सकते थे। उन्होंने नौकर से कहा- “अभी यहाँ से हट जा वरना मैं तलवार से तेरा सिर उड़ा दूँगा।”

नौकर ने सिर झुकाकर कहा- “हजूर मेरे देश के स्वामी हैं, इसलिए मैं आप पर हाथ तो उठा नहीं सकता। पर यह निश्चय है कि आप मेरी लाश पर पैर रखकर ही भीतर जा सकेंगे। पर याद रखिए कि भीतर जाने पर बेगमें तलवार लेकर आपका मुकाबला करेंगी, क्योंकि जब उनकी इज्जत पर हमला किया जाएगा तो वे अपना बचाव जरूर करेंगी।

बादशाह का नशा सेवक की खरी बातों को सुनकर ठंढा पड़ गया और वे वापस चले गए। दूसरे दिन उस पदाधिकारी ने बादशाह से कहा- “मेरे जिस नौकर ने कल आपके सामने बेअदबी की थी, उसे मैंने दंडस्वरूप अपने यहाँ से निकाल दिया है।

बादशाह ने कहा- “यह तो बहुत अच्छा हुआ, मैं उसे आपसे माँगकर अपने अंगरक्षकों का सरदार बनाना चाहता था। बस अब आप उसे बुलाकर मेरे पास भेज दीजिए।” सच्चे व्यक्ति की कदर सभी जगह होती है।